Shamsher bahadur singh biography in hindi
शमशेर बहादुर सिंह | |
पूरा नाम | शमशेर बहादुर सिंह |
जन्म | 13 जनवरी, 1911 |
जन्म भूमि | देहरादून |
मृत्यु | 12 मई, 1993 |
मृत्यु स्थान | अहमदाबाद |
अभिभावक | बाबू तारीफ़ सिंह और श्रीमती प्रभुदेई |
पति/पत्नी | श्रीमती धर्मदेवी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कवि, लेखक |
मुख्य रचनाएँ | 'कुछ कविताएं' (1956), 'कुछ और कविताएं' (1961), 'शमशेर बहादुर सिंह की कविताएं' (1972), 'उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष' (1980), 'इतने पास अपने' (1980), 'चुका भी हूं नहीं मैं' (1981), 'बात बोलेगी' (1981), 'काल तुझसे होड़ है मेरी' (1988), 'शमशेर की ग़ज़लें' |
भाषा | हिंदी तथा उर्दू |
शिक्षा | बी.ए.Pictures of booker planned washington biography amazon |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1977), मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार (1987), राष्ट्रीय कबीर सम्मान (1989) आदि। |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | शमशेर बहादुर सिंह की काव्य भाषा में बिम्ब विधान |
कार्यक्षेत्र | 'रूपाभ' में कार्यालय सहायक के रूप में (1939); 'कहानी' में त्रिलोचन के साथ (1940); 'नया साहित्य' बम्बई में कम्यून में रहते हुए (1946); 'माया' में सहायक सम्पादक (1948-54); 'नया पथ' और 'मनोरथ कहानियाँ' में सम्पादन सहयोग। दिल्ली विश्वविद्यालय में यू.जी.सी.
के प्रोजेक्ट 'उर्दू-हिंदी कोश' में सम्पादक (1965-77)। अध्यक्ष- प्रेमचंद सृजन पीठ, विक्रम विश्वविद्यालय 1981-85 यात्रा: सोवियत संघ 1978। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
शमशेर बहादुर सिंह (अंग्रेज़ी: Shamsher Bahadur Singh, जन्म: 13 जनवरी, 1911 - मृत्यु: 12 मई, 1993) आधुनिक हिंदीकविता के प्रगतिशील कवि हैं। ये हिंदी तथा उर्दू के विद्वान हैं। प्रयोगवाद और नई कविता के कवियों की प्रथम पंक्ति में इनका स्थान है। इनकी शैली अंग्रेज़ी कवि एजरा पाउण्ड से प्रभावित है। शमशेर बहादुर सिंह 'दूसरा सप्तक' (1951) के कवि हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने कविताओं के समान ही चित्रों में भी प्रयोग किये हैं। आधुनिक कविता में 'अज्ञेय' और शमशेर का कृतित्व दो भिन्न दिशाओं का परिचायक है- 'अज्ञेय' की कविता में वस्तु और रूपाकार दोनों के बीच संतुलन स्थापित रखने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है, शमशेर में शिल्प-कौशल के प्रति अतिरिक्त जागरूकता है। इस दृष्टि से शमशेर और 'अज्ञेय' क्रमशः दो आधुनिक अंग्रेज़ कवियों एजरा पाउण्ड और इलियट के अधिक निकट हैं। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में शिल्प को प्राधान्य देने का श्रेय एजरा पाउण्ड को प्राप्त है। वस्तु की अपेक्षा रूपविधान के प्रति उनमें अधिक सजगता दृष्टिगोचर होती है। आधुनिक अंग्रेज़ी-काव्य में काव्य-शैली के नये प्रयोग एजरा पाउण्ड से प्रारम्भ होते हैं। शमशेर बहादुर सिंह ने अपने वक्तव्य में एजरा पाउण्ड के प्रभाव को मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है- टेकनीक में एजरा पाउण्ड शायद मेरा सबसे बड़ा आदर्श बन गया।
परिचय
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म देहरादून में 13 जनवरी, 1911 को हुआ। उनके पिता का नाम तारीफ सिंह था और माँ का नाम परम देवी था। शमशेर जी के भाई तेज बहादुर उनसे दो साल छोटे थे। उनकी माँ दोनों भाइयों को 'राम-लक्ष्मण की जोड़ी' कहा करती थीं। जब शमशेर बहादुर सिंह आठ या नौ वर्ष के ही थे, तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई, किन्तु दोनों भाइयों की जोड़ी शमशेर की मृत्यु तक बनी रही।
शिक्षा
आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई और हाईस्कूल-इंटर की परीक्षा गोंडा से दी। बी.ए.
Michio mamiya biographyइलाहाबाद से किया, किन्हीं कारणों से एम.ए. फाइनल न कर सके। 1935-36 में उकील बंधुओं से पेंटिंग कला सीखी। 'रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियां' आदि में संपादन सहयोग। उर्दू-हिन्दी कोश प्रोजेक्ट में संपादक रहे और विक्रम विश्वविद्यालय के 'प्रेमचंद सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे। दूसरा तार सप्तक के कवि हैं।
विवाह
सन 1929 में 18 वर्ष की अवस्था में शमशेर बहादुर सिंह का विवाह धर्मवती के साथ हुआ, लेकिन छह वर्ष के बाद ही 1935 में उनकी पत्नी धर्मवती की मृत्यु टीबी के कारण हो गई। 24 वर्ष के शमशेर को मिला जीवन का यह अभाव कविता में विभाव बनकर हमेशा मौजूद रहा। काल ने जिसे छीन लिया था, उसे अपनी कविता में सजीव रखकर वे काल से होड़ लेते रहे। युवाकाल में शमशेर बहादुर सिंह वामपंथी विचारधारा और प्रगतिशील साहित्य से प्रभावित हुए थे। उनका जीवन निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति का था।
काव्य शैली
शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह में मुक्त साहचर्य और असम्बद्धताजन्य दुरूहता के तत्त्व साफ़ नज़र आते हैं। उनकी अभिव्यक्ति में अधूरापन परिलक्षित होता है। शमशेर की कविता में उलझनभरी संवेदनशीलता अधिक है। उनमें शब्द-मोह, शब्द-खिलवाड़ के प्रति अधिक जागरूकता है और शब्द- योजना के माध्यम से संगीत-ध्वनि उत्पन्न करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती हैं।
- आधुनिक काव्य-बोध
शमशेर की कविताएँ आधुनिक काव्य-बोध के अधिक निकट हैं, जहाँ पाठक तथा श्रोता के सहयोग की स्थिति को स्वीकार किया जाता है। उनका बिम्बविधान एकदम जकड़ा हुआ 'रेडीमेड' नहीं है। वह 'सामाजिक' के आस्वादन को पूरी छूट देता है। इस दृष्टि से उनमें अमूर्तन की प्रवृत्ति अपने काफ़ी शुद्ध रूप में दिखाई देती है। उर्दू की गज़ल से प्रभावित होने पर भी उन्होंने काव्य-शिल्प के नवीनतम रूपों को अपनाया है। प्रयोगवाद और नयी कविता के पुरस्कर्ताओं में वे अग्रणी हैं। उनकी रचनाप्रकृति हिन्दी में अप्रतिम है और अनेक सम्भावनाओं से युक्त है। हिन्दी के नये कवियों में उनका नाम प्रथम पांक्तोय है। 'अज्ञेय' के साथ शमशेर ने हिन्दी-कविताओं में रचना-पद्धति की नयी दिशाओं को उद्धाटित किया है और छायावादोत्तर काव्य को एक गति प्रदान की है।
विचारधारा
शमशेर बहादुर सिंह हिन्दी साहित्य में माँसल एंद्रीए सौंदर्य के अद्वीतीय चितेरे और आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा के समर्थक रहे। उन्होंने स्वाधीनता और क्रांति को अपनी निजी चीज़ की तरह अपनाया। इंद्रिय सौंदर्य के सबसे संवेदनापूर्ण चित्र देकर भी वे अज्ञेय की तरह सौंदर्यवादी नहीं हैं। उनमें एक ऐसा ठोसपन है, जो उनकी विनम्रता को ढुलमुल नहीं बनने देता। साथ ही किसी एक चौखटे में बंधने भी नहीं देता। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' उनके प्रिय कवि थे। उन्हें याद करते हुए शमशेर बहादुर सिंह ने लिखा था-
"भूल कर जब राह, जब-जब राह..
भटका मैं/ तुम्हीं झलके हे महाकवि,/ सघन तम की आंख बन मेरे लिए।"
शमशेर के राग-विराग गहरे और स्थायी थे। अवसरवादी ढंग से विचारों को अपनाना, छोड़ना उनका काम नहीं था। अपने मित्र और कवि केदारनाथ अग्रवाल की तरह वे एक तरफ़ 'यौवन की उमड़ती यमुनाएं' अनुभव कर सकते थे, वहीं दूसरी ओर 'लहू भरे ग्वालियर के बाज़ार में जुलूस' भी देख सकते थे। उनके लिए निजता और सामाजिकता में अलगाव और विरोध नहीं था, बल्कि दोनों एक ही अस्तित्व के दो छोर थे। शमशेर बहादुर सिंह उन कवियों में से थे, जिनके लिए मार्क्सवाद की क्रांतिकारी आस्था और भारत की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा में विरोध नहीं था।
रचनाएँ
|
|
सम्मान और पुरस्कार
शमशेर बहादुर सिंह को देर से ही सही, बडे-बडे पुरस्कार भी मिले- साहित्य अकादमी (1977), मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार (1987), कबीर सम्मान (1989) आदि।
निधन
शमशेर बहादुर सिंह ने 12 मई, 1993 को दुनिया से अलविदा कहा। डॉ.
रंजना अरगड़े के अनुसार "जब उन्हें हार्ट अटैक आया तो अस्पताल में लगभग 72 घंटे से भी कम रहे। वह बहुत पीड़ा का समय तो नहीं था। लेकिन उन्हें शायद अंदाज़ा हो गया था कि अब जाने का समय आ गया है। मैं उनसे पूछ रही थी कि वे क्या सुनना चाहेंगे ग़ालिब या कुछ और लेकिन वे इनकार में सिर हिलाते रहे।" वे याद करती हैं, "आख़िर में शमशेर ने गायत्री मंत्र सुनने की इच्छा जताई। उज्जैन में जब वे थे तो संस्कृत की छूटी हुई कड़ी वहीं हाथ आ गई थी। मैं गायत्री मंत्र बोल रही थी और वे साथ में बोलते जा रहे थे। मंत्र बोलते -बोलते जब वे चुप हो गए तो मैं जान गई थी कि अब वे नहीं हैं।"[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 590। सहायक ग्रंथ- 'शमशेर' संपादक मलयज